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लॉरेल थैचर उलरिच कहती हैं कि ”सुघड़ औरतें विरले ही इतिहास बनाती हैं।“ सही बात है। मगर यह भी सच है कि बदतमीज़ कही जाने वाली औरतों (जो स्थापित कायदे कानूनों की अवहेलना करती हैं या उन्हें चुनौती देती हैं) को इतिहास में अकसर जगह नहीं मिलती है। दरअसल नारीवादी आवाज़ों को अकसर ही नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, दबा दिया जाता है, खामोश करा दिया जाता है, या, और कुछ नहीं तो भुला दिया जाता है। इसके अलावा, नारीवादी ऐतिहासिक सामग्री और साझा स्मृतियां भी वक्त की नमी, धूल और कई बार खुद अपनी उपेक्षा के कारण नष्ट होती चली जाती हैं।
इस नारीवादी आरकाइव को तैयार करने का यही सबब है। यह एक ऐसा ठिकाना है जो हमारी आवाज़ों को अहमियत देता है, उन्हें इकट्ठा करता है, संभालता है, महफूज़ रखता है और बांटता है। हम इसे ऐसा नारीवादी आरकाइव बनाना चाहते हैं जो सबकी पहुंच में हों। इसका नाम - लिविंग फेमिनिज़्म्स - हमारी इसी तरह की एक पुरानी कोशिश से निकला है। जी हां, 2004 में भी हमने एक छोटी सी पुस्तिका के रूप में एक आरकाइव तैयार करने की कोशिश की थी।
दिल्ली स्थित नारीवादी संगठन जागोरी की मेज़बानी में आयोजित लिविंग फेमिनिज़्म्स अपने इतिहास के सरगरमियों भरे 30 सालों को संजोकर करने की एक कोशिश है। साथ ही इसमें जागोरी से जुड़े जागोरी ग्रामीण और जागोरी संगत के इतिहास को भी जमा किया जाएगा। यह एक ऐसा इतिहास है जो हम सबके ज़हनो-जि़ंदगी, गीतों-गज़लों, किताबों, नाटकों, तस्वीरों, नारों और तख्तियों में बिखरा पड़ा हुआ है। लिहाज़ा, एक तरफ तो जागोरी इस आरकाइव के चश्मे से मुड़कर अपने इतिहास की जड़ों को देख रहा है और दूसरी तरफ यह आरकाइव सिर्फ जागोरी तक ही सीमित नहीं है या यूं कहिए कि यह सिर्फ जागोरी का ही आरकाइव नहीं है।
इसकी वजह यह है कि क्योंकि जागोरी खुद भी अस्सी के दशक में चली राजनीतिक उथल-पुथल से दोस्तों-सहेलियों और कामरेड्स की एक मिली-जुली टोली के रूप में ही उभरा था। शुरुआती दिनों में इसका न तो कोई नाम था, न इसकी तयशुदा हदें थीं। इसकी सदस्याओं और शुभचिंतकों में बहुत सारी ऐसी नारीवादी थीं जिनके कई-कई एजेंडा, समूह और जुड़ाव थे। लिहाज़ा, यह आरकाइव आंदोलन के फलक को भी दिखाता है और उसके शुबहों, सवालों, असहमतियों और जश्नों का ज़खीरा भी है। बहरहाल, जैसे-जैसे इस कलेक्टिव का काम, दायरा, एजेंडा और कार्यक्षेत्र फैलता गया, वैसे-वैसे और ज्यादा लोगों, संरचनाओं, व्यवस्थाओं और निश्चय ही अनुदानों की ज़रूरत भी बढ़ती गई है। अलग-अलग फोकस रखने वाले, अलग-अलग रणनीतियों से काम करने वाले संगठन सामने आए हैं। जागोरी की भी एक स्पष्ट (सांगठनिक) पहचान बनी है। जो शुरुआती कोशिशें बहुत पुख्ता और परिभाषित नहीं थीं वही समय के साथ एक स्पष्ट शक्ल ले चुकी हैं।
इस पूरे सफर के दौरान इसका वृतांत और प्रेक्सिस न केवल स्वायत्त महिला आंदोलन से निकला और उससे संवाद करता रहा है बल्कि दूसरे संबद्ध सामाजिक आंदोलनों से भी लगातार गुंथा रहा है। इसकी विरासत में महिलाओं के संगठन और महिला आंदोलन, विचारधारा और अलग-अलग पीढि़यों में नारीवाद के व्यवहार व बहसों की गहमागहमी भी शामिल रही है। लिहाज़ा, जहां एक तरफ यह आरकाइव एक बेनाम, ढीले-ढाले समूह की जड़ें तलाशता है जिसने आगे चल कर जागोरी के रूप में शक्ल ली, वहीं दूसरी तरफ इसे राजनीतिक नेटवर्कों और निजी दोस्तियों के एक साझा फलक पर पैवस्त इकाई के रूप में देखना भी ज़रूरी है। किसी भी दूसरे ऐतिहासिक ब्यौरे की तरह यह आरकाइव भी कुछ खास बिंदुओं से पैदा हो रहा है मगर न तो यह भारत में स्वायत्त महिला आंदोलन का इतिहास है और न ही यह जागोरी का इतिहास है। इसका मकसद इतिहास लिखना नहीं है बल्कि फिलहाल यह कुछ लोगों के गिने-चुने तजर्बों और उनके विचारों को समझने की एक खिड़की भर है। इसकी रचना के दौरान हम ज्ञान की राजनीति और इस बात से बहुत गहरे तौर पर परिचित रहे हैं कि कैसे कुछ कहानियों को बार-बार दोहराया जाता है और कुछ कभी ज़बान पर नहीं आतीं, कहानी कहने वाली कुछ ज़बानों से हम बार-बार रूबरू होते हैं और कुछ से हमारा कभी वास्ता नहीं पड़ता। लिहाज़ा, हम इसे देश भर की महिलाओं की एक साझा कोशिश बनाना चाहते हैं।
अपनी तरह की ऐसी ही दूसरी कोशिशों की तरह लिविंग फेमिनिज़्म्स भी वक्त और हालात, अनकही कहानियों या कही जा चुकी मगर भुला दी गई कहानियों, पत्र-पत्रिकाओं के पन्नों से बाहर छूट गई साथियों या काबिले-बयान किस्सों और तजुर्बों के ज़रिए इतिहास को याद करने की एक कोशिश है। यह विविध और एक-दूसरे से भिन्न विचारों, हमारे शुबहों, संकल्पों, कोशिशों, रचनाशीलता, मतभेदों, कोशिशों और एकजुटताओं का लगातार जारी रहने वाला रिकॉर्ड है। महिला आंदोलन, नारीवादियांे, नारीवादों तथा शहर और उसके किरादार, उसके सार्वजनिक स्थानों की आरकाइविंग की एक वृहत्तर प्रक्रिया में यह हमारा एक छोटा सा योगदान है। हम इसे अतीत को याद रखने की संस्कृति रचने की अपनी विनम्र कोशिश के रूप में देखते हैं क्योंकि हमारी राय में न केवल आज के लिए बल्कि आने वाले दौर के लिए भी यह याद रखना बहुत लाजि़मी है।
हम अन्य नारीवादी आरकाइव्ज़ के साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन संपर्कों और संवादों और साझेदारियों का स्वागत करते हैं।
इस आरकाइव में क्या-क्या समाया है?
वैकल्पिक नारीवादी दायरों में बहुत सारा ज्ञान और कला रची गई है। इसमें प्रकाशित और अप्रकाशित, दोनों तरह की सामग्री है जो बहुत सारे परंपरागत पुस्तकालयों की पहुंच से बाहर हैं। अस्सी के दशक से अब तक के इस आरकाइव के दायरे में निजी और सांगठनिक दस्तावेज़ी आरकाइव यानी किताबें, पत्रिकाएं, गीत, पोस्टर्स, कविताएं, फोटोग्राफ, सम्मेलनों के दस्तावेज़, पर्चें, महिलाओं के तजुर्बे आदि शामिल हैं।
इसमें विभिन्न थीम्स पर कई नारीवादियों की सोच, सरगर्मियों और परियोजनाओं का ब्यौरा दिया गया है। इन बहुप्रयुक्त थीम्स को तलाश की सुविधा के हिसाब से अलग-अलग खानों में रखा गया है (जैसे, एकल महिलाएं, सेक्स वकर्स के अधिकार, महिला विरोधी हिंसा, यौनिकता, वगैरह)। हालांकि हमारा काम यही दिखाता है कि इस तरह की खानाबंदी अकसर बेमानी होती है क्योंकि ये सारी चीज़ें आपस में गुंथी हुई हैं। फिर भी, यह वर्गीकरण इस विषय पर हमारी पोज़ीशन को भी दर्शाता है। जैसे-जैसे समय के साथ हम इस भण्डार को फैलाते जाएंगे, हमें उम्मीद है कि यह आरकाइव फैलता जाएगा और इस तरह लगातार ज़िंदा रहेगा।