शान्ति की कहानी शान्ति की ज़ुबानी
ये दोनों ही तस्वीरें जागोरी के आफिस में एक ही दिन में ली गई दिखती है I जागोरी का आफिस तब साउथ एक्स्टेंशन पार्ट II में हुआ करता था I पहली तस्वीर में मई और आभा दिख रहें है और दूसरी में हम दोनों के साथ दो मेहमान भी हैं I मुझे ठीक से याद तो नही आ रहा कि ये दोनों कौन है पर उन दिनों अक्सर देश विदेश से आभा के दोस्त जागोरी में आते थे I जागोरी की उन दिनों में खूब नाम था , उसके विचारधरा की वजह से एक पहचान थी I जब जागोर की शुरुआत हुई तो ये एक कोरी शोध करने वाली संस्था के नाम से जानी जाती थी पर ह्म्स्बके काम की वजह से धीरे धीरे इसका परिचय बदलकर काम आधारित शोध से जुड़ गया I
इस संस्था में मैंने बहूत अच्छे दिन गुज़ारे I मै प्रशिक्षण के सिलसिले में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अन्य जगहों के गावों में खूब घूमी, देखा और सीखा I शुरू शुरू में मै आभा और दुसरे लोगो के साथ जाया करती थी पर जागोरी के बाद मैंने स्वतंत्र रूप से ट्रेनिंग करना शुरू कर दिया I मैंने आभा से बहूत सीखा, उसने मेरे अंदर छिपे हुनर को पहचाना I प्रशिक्षण की गुर मैंने आभा ही सीखे I मुझे मलिन और मजदूर बस्तियों और समुदायों में रह रही बहनों से भी बहूत सहयोग मिला साथ ही मध्यम वर्ग की कार्यकर्ताओं से भी सामजिक और आर्थिक रूप से मदद मिली I आभा दीदी, कमला जी , माया दीदी, मीता और रुनु चक्रवर्ती का नाम ख़ास तौर से लेना चाहूंगी I आज मै बड़े गर्व से इनके नाम लेती हूँ I
नारीवाद ने केवल महिलाओं के मुद्दों के बारे में मेरी समझ बनाई बल्कि एक नई दुनिया से भी मुझे मिलाया I सामाजिक राज्बैतिक संघर्षों के साथ जोड़ा I ऊपर ये जो फोटो है ये एक ऐसी मीटिंग की जहां राजनैतिक दलों का ध्यान आम इंसानों के मसलों की और खींचना था I
कई नागरिक संस्थाओं और आंदोलनों ने एक नारीवादी कार्यकता के रूप में मुझे आमंत्रित किया है I ये जो नीचे दूसरी तस्वीर है ये एक राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन ‘हिन्द मजदूर सभा’ के साथ की गई मेरी एक ट्रेनिंग की है I जागोरी छोड़ने के बाद माया दीदी इस ट्रेड यूनियन के साथ काम करने लगी थी और इसलिए मै भी वहां प्रशिक्षक के रूप में जुड़ी I में एकबार लोनावला तक हो आयी, ये तस्वीर शायद वहां की ही है I in ट्रैड यूनियनों में महिलाओं की तुलना में पुरुष सदस्य कहीं ज़्यादा स्न्खाय में होते है, ये ट्रेनिंग उनके बीच में जेंडर पर आधारित थी I
ये सुभाष कैंप की एक बहूत पुरानी तस्वीर है I सुभाष कैंप द्क्षिणपूरी के पास की एक अनधिकृत रिहायसी बस्ती है जहाँ पर ज़्यादातर रहने वाले बाहर से आये हुए लोग है I मै भी कई सालों तक वहां रहती थी I जागोरी ने यहाँ महिलाओं का संगठन बनाने का काम किया था और मै जागोरी की तरफ से वहां काम करती थी I इस दौर में जागोरी, सहेली , एक्शन इंडिया सभी एक साथ एक समूह के रूप में काम करते थे I कौन कहां काम करती है इस से कुछ फर्क नही पड़ता था बस साथ मिलकर काम करना ही मकसद था, तौर तरीके थे I १९८० के दशक से ही ये सभी संस्थाएं यहाँ और दिल्ली के कई और इलाके जैसे नन्दनगरी, सीमापुरी और जहांगीरपुरी में भी काम करती थीं I जब मई जागोरी में थी तो हर हफ्ते मै यहाँ जाया करती थी और कभी कभी तो रात भी वहीं गुज़ारा करती थी I
हर मंगलवार किराए के एक कमरे में ये ग्रुप अपने मुद्दों जैसे कि सार्वजनिक सुविधाएं, पानी बिजली की किल्लतों और औरत होने के नाते हमारे हक़, हम पर हो रही हिंसा आदि विषयों पर चर्चा करने के लिए मिलता था I इस तस्वीर में दिख रही लडकियाँ अब तो खूब बड़ी हो गयीं है I इस तस्वीर में वो सब फिल्म देख रहीं हैं, अपनी समस्याओं पर सोचने और बात चीत करने के लिए मै अक्सर फिल्म दिखाया करती थी I आज भी मै कभी कभी मौका मिलते ही उनसे और उनके बच्चों से मिलने उन्ही के इलाके में चली जाती हूँ I
यूँ चर्चा तमाम विषयों पर होती थी पर जो विषय मुझे आज भी याद है वो है महिलाएं और साइकिल I हमने सवाल उठाये कि हम सभी महिलाएं भी साइकिल चला सकती है? इसमें क्या बुराई है ? ये मुद्दा इसलिए इस ग्रुप के लिए महत्व रखता था क्योंकि इन्हें सब्जी से लेकर राशन लाने के लिए, स्कूल जाने या फिर दुसरे तमाम कामों को पैदल चलकर ही पूरा करना पड़ता था I और जबकि लडके और मर्द झट से अपने साइकल ले और चल देते कहीं भी I दरअसल में ये लडकियाँ तिगढ़ी में रहती थी और अपने अपने घर से पैदल चलकर दूर सुभाष कैम्प के इस कमरे तक पहूँचती थी I ये रास्ता काफी लम्बा पड़ता था I क्योंकि न तो इन्हें कभी भी साइकिल चलाने का मौका ही मिला और न ही नके दिल, दीमाग और शरीर को पूरा खुलने का और खिलने काI
तो हम उन्हें इलाके के पिछवाड़े के खाली पड़े मैदान, जिसे हम जंगल भी कहते थे, में ले जाते और वहां ये लडकियाँ साइकिल चलाना सीखती I साइकिल वाले इस ग्रुप में 12-13 लडकियाँ थी और साथ में सुभाष कैंप की महिलाएं भी I हम घर से अपना खाना साथ लाते, रोटियाँ बांधी साथ में प्याज और आचार का सलीके से बना अलग पुडिया भी I बहूत ही अनोखा अनुभव था ये I जमीन पर हम दरिया चटाइयां बिछा लेते, साथ खाते, अपने अपने रिपोर्ट लिखते, गाने भी गाते और नाचते भी I सावन में तो हम बड़े ऊँचे पेड़ों पर झूला भी लगाते और खूब झूलते I शाम को घर लौटे वक्त जंगल से हम घर के चूले के लिए लकडिया भी चुन लेते I बहूत ही मजा आता था सच में...
उस समय समूह बड़ा तगड़ा था , यहाँ तक की महिला समाख्या से भी बहने इन सब गतिविधियों में शामिल होती थीं I शाम को ही महिलाओं को फुरसत मिलती थी , रात का खाना पका कर रात लगभग 8 बजे के बाद वो समूह के दफ्तर में मिलती I अगर किसी केस में मदद के लिए जाना होता तो आपस में एक दुसरे के बच्चों की देखबाल कर लेते थे I मिसाल के लिए मैंने अपने बच्चे तुम्हारे घर पर भेजे तो तुम अपने बच्चों को किसी और के यहाँ कुछ घंटो के लिए भेज दो जिस से की हम दोनों रात में भी ऑफिस में काम के कुछ समय गुजार सकें I हमारे अंदर बेहद उर्जा थी, कुछ करने का जूनून भी I
मुझे याद आ रही है वो औरत जो मीटिंग चलते के बीच बीच में अपनी गर्दन निकाल कर साथ वाले छज्जे की पर अपनी नजर घुमा लेती, अपने को तसल्ली देने के लिए की पति कहीं जग तो नही गया I उसके पति ने महिलाओं के इस समूह से जुड़ने में पाबंदी जो लगा रखी थी पर वो किसी न किसी बहाने अपने जुगाड़ से घर से खिसक लेती और हमारे साथ जुड़ जाती I
जागोरी में उस वक्त एक पारम्परा आम थी , ख़ास तौर पर जब हम मीटिंग के लिए इकट्ठे होते तो नाचते और गाते जरूर थे,I ये गीत आजादी, साथिनो और प्यार के गीत थे I ये नाचने की तस्वीर जागोरी के ऑफिस में हुई एक ऐसी ही मीटिंग की है I मेरे बाई तरफ नीले कुर्ते में माया दीदी ( माया मेहता ) हैं और बिलकुल दाएँ हूँ मै I माया और मानी कई ट्रेनिंग एकसाथ की है I वो मेरी अच्छी दोस्त रहीं है, हमारे बीच झगड़े भी हुए पर वो उन्होंने मुझे साहारा भी बहूत दिया है I
जागोरी को लोग अपना घर कहा करते थे I हमे रिशों में गर्माइश भी महसूस होती थी I दुपहर को खाने के समय हम सभी अपना अपना कहने का डिब्बा बीच में रख देते थे जिस से कि सभी की पहुंच उस डिब्बे तक हो I खाना मिलबाँट कर खाते थे और ये एक सामूहिक अनुभव भी था I इसमें से ताकत मिलती थी I
ये तस्वीर द्क्षिणपूरी के एक बरात घर में हुई एक ट्रेनिंग की लगती है I मेर साथ बैठी ( मै करते में हूँ और मेरा हाथ उठा हुआ है ) अक्षं इंडिया की विद्या है I उसने फड़ का एक सिरा पकड़ रक्खा है I ये फड़ बेटा और बेटी में हो रहे भेदभाव पर आधारित है I
बस्ती में महिलाओं के बीच चर्चा करने के लिए हम प्रशिक्षक फड़ का इस्तमाल करते थे I इन फडों को बनाना भी प्रशिक्षक ओर सीखने वालों के बीच में सामूहिक गतिविधि ही थी I हम महिलाओं के जीवन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के बाद हम तय करते थे की हमे किन मसलों पर ध्यान देना है, लिस्ट बनाते थे की क्या क्या सामग्री बनाने है , कौनसे चित्र बनाने है, किस गाने का इस्तमाल कब और कहां करना है I हम में से कुछ भोत अच्छी तस्वीरें बना लेती थी तो कुछ अच्छा गा लेती थीं I हम अपने अपने हुनर के आधार पर जिम्मेवारियां आपस में बाँट लेते थे I
(चित्र में सोते हुए बच्चे की तस्वीर कितनी खूबसूरती से हमे याद दिलाती है कि हम औरतें हर वक्त एक साथ कितनी भूमिकाये निभाती हैं I इस बच्चे की माँ जरूर इस ट्रेनिंग में शामिल थी I)
आज से 10 -12 साल पहले दक्षिणपुरी में किसी भी सरकारी पानी की टंकी के पास 100-150 लोग यूँ कतार में दिखना एक आम बात थी I सरकारी जलनिगम इन इलाकों में पानी की सप्लाई देने से इनकार कर देते थे क्योंकि ये ग़ैरकानूनी कालोनी थी I इसलिए यहाँ की औरतें पास के किसी कालोनी जहां नियमित पानी आता था वहां से पानी भर कर लाती थीं I पर यहाँ भी उन्हें अक्सर भगा दिया जाता था, बेईज्जत किया जाता था , कभी कभी तो डराया धमकाया भी जाता था I महिलाओं ने कईबार जलनिगम के दफ्तर के बाहर धरना प्रदर्शन भी किये पर कुछ फायदा न हुआ I सरकार को यहाँ रहने वाले लोगों की कोई परवाह तो थी नही पर यहाँ रहें वाले हजारों लोगों को तो जीने के लिए पानी की जरूरत थी I
तो लोग इकट्ठे हुए और तय किया कि अपनी मेहनत और पैसे जोड़कर पाइप खरीदे जाए और पानी के मेन पाइप लाइन से उन्हें जोड़ दिया जाए I हम में से किसी को जमीन खोदना आता था तो कुछ पाइप बिछाना और जोड़ना जानते थे I महिलाएं भी इस सब में जुड़ीं I हम पाइप लाये, उन्हें खींचा , बिछाया और दूसरी महिलाओं को भी ये काम सिखाया I आखिर में हम सफल हुए और पानी मिला I इस फोटो में मै पाइप लाइन ठीक से बिछी है कि नही देख रहीं हूँ I
इस इलाके सिवर लाइन भी नही थी I फिर से महिलाएं, पुरुष, लडके इकट्ठे हुए, जमीन खोदी और खुद पाइप ढोकर वहां बिछाया I ये सभी काम सामूहिक थे और महिलायें इन सभी कामों को सफल रूप देने में आगे थीं I
दक्षिणपुरी की इस महिला समिति की अपनी एक पहचान थी I इलाके के पुलिस हम से कतराती थी I हमने तो इन पुलिस वालों की जबरन उघाई के खिलाफ एक मुहीम भी चलाई I उस समय पर वो हर झुग्गी से हर हफ्ते 10 रुपया लेते थे I हमने चार महिलाओं और चार पुरुषों को लेकर एक कमेटी बनाई जो इन पुलिसवालों पर नजर रखते और सामना भी करते थे I
हमे पता चला कि हमारे इलाके में कुछ परिवार में असम से कम उम्र की लडकियाँ को ब्याह कर लाया जा रहा था I जैसे ही मालूम हुआ कि ऐसी ही एक लड़की को दस हज़ार में लाया गया है हमने तुरंत महिला समूह की मीटिंग बुलाई I मीता और माया दोनों ही तब जागोरी में थी, वो भी दक्षिणपुरी पहूंची और हमने मिलकर रणनीति बनाई I दूसरी महिलाओं के साथ नौरती और शीला भी वहां मौजूद थी I
उसी रात 10-20 महिलाएं चुपके उस झुग्गी में घुसी जहां उस दुल्हन को रक्खा गया था I उस रात बिजली गुल थी तो चरों ओर घुप्प अँधेरा था I झुग्गी के बाहर एक झाड़ू दिही , हम में से किसी के पास दियासलाई थी और हमने वो झाड़ू सुलगाई और कुछ लोग उसे लेकर झुग्गी के अंदर घुस गए बाकी बाहर पहरा देते रहे I हमने उस एजेंट को और साथ में उस लडकी को भी बाहर खींच लाये I बाल बाल बचे हम उस दिन I इस तरह के अनुभव ने हमे बहूत सिखाया , हमारे सोच और विचार को पैना किया I साथ में हम में आत्मविश्वास और शक्ति भी जगाई I
इन संघर्षों में मैंने खुद कई मर्दों का सामना किया और कियों को धूना भी I पर अचम्भे की बात ये की इनमे से कई मर्दों ने मेरे अच्छे बूरे समय में मेरा साथ भी दिया I ये महिला समूह का एक ही सकारात्मक नतीजा था I मै यहाँ एक बात जरूर दर्ज़ करना चाहूंगी कि बस्ती में रहने वाली इन महिलाओं ने कई बार जो कर दिखाया वो मध्यमवर्गीय महिला कार्यकर्ताओं से भी आगे निकल गया I उदाहरण के लिए मै की महिलाओं को व्यक्तिगत रूप से जानती हूँ कि जिन्होंने अपनी बेटी को शादी में दहेज नही दिया और वहीं उच्च वर्ग की महिलाओं को भी जानती हूँ जिन्होंने अपने दामाद को दहेज से भर दिया I बस्ती की इन तमाम महिलाओं को मेरा सलाम जिन्होंने अपने मकसद और फैसलों से समझौते नही किये I
ये मेरे अपने परिवार की तस्वीर है जिसमे मेरी दो बेटियां अनीता और सुनीता, अपनी बेटियों और मेरे छोटे बेटे के साथ दिख रहीं है I
जब मै पलटकर अपनी ज़िन्दगी में देखती हूँ तो अहसास होता है कि मेरे बच्चे अनाथों की तरह पले बड़े I जब वो छोटे थे तो मै घर पर कम ही होती थी I मै अपने कार्यकर्ता के जीवन और कामों में ही समाई हुई थी I अगर मै उन्हें समय देती तो शायद वो भी पढ़लिख जाते I ऐसा नही कि हर समय दौरे पर ही रहती पर जब शहर में भी होती घर पर मुश्किल से टिकती I दिन हो या रात , मै या तो केस के लिए बाहर होती या फिर किसी धरने जलूस में ( जैसा कि दाहिने हाथ की पिक्चर में दिख रहा है ) शामिल होती I किसी मीटिंग में मशरूफ नही तो आभा या माया के घर पर काम के सिलसिले में I कभी कभी अब मै किसी पार्क में चले जाती हूँ और दुःख से फूट फूट कर रो लेती हूँ I जब मेरे बच्चे छोटे थे मै उन्हें अकेला छोड़ जाती थी I न जाने वो कैसे खाना पकाते होंगे I मैंने आन्दोलन को मेरे बच्चों से ज़्यादा समझा I शी में मैं तब ऐसा नही सोचती थी पर अब सोचती हूँ I मेरे ब्छ्कों ने तो अपने पिता को भी कम उम्र में खो दिया , ख़ास तौर पर दोनों छोटे बच्चों ने I मुझे लगता है की दुसरे बच्चों का मुझसे प्यार उनके प्यार से अलग है I मैंने उनकी अनदेखी की, मेरी तरफ से उनके प्रति मैंने ये एक बहूत बड़ा पाप किया है, जिसकी ग्लानी मरते दम तक मेरे साथ रहेगीI
कई साल पहले मेरे सबसे छोटा बच्चे को शराब के नशे की लत पड़ गई I जुआ खेलने वाए लडकों के साथ वो रहने लगा I मै इतनी परेशान हुई की मैंने दिल्ली का घर बेच डाला और अपने साह उसे राज्श्तन ले गई कि वो मेरे साथ समय गुज़ार सके और मै उसकी पीने की लत छुडा सकूं I पिछले दस सालों में उसने मेरी जेंडर ट्रेनिंग में मदद की I मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मै उसे इस हद तक बदल पायी हूँ I नही तो ये बड़े ही दुःख की बात होती कि जहां मै बाहर की दुनिया की तो मदद करती हूँ पर अपने घर का हाल बेहाल है I
ये पिक्चर उस समय की है जब ठेलों में लाटरी टिकट बिका करते थे I ये दक्षिणपुरी के बी ब्लाक का इलाका है I इस छोटे से बजार के एक कोने में एक नल था जिससे से करीब 100-200 लोगों को पानी मिलता था I लाटरी वालों को जगह दिलवाने के लिए एक दुकानदार ने इस नल को उखडवा दिया I इस बात को लेकर एक तगड़ी लड़ाई छिड़ गई क्योंकि इतने लोगों को इस का असर झेलना पड़ा I इलाके की महिलाओं ने इन गुंडों के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख भूमिका निभाई I हमने एक मीटिंग बुलाई जिसमे महिलाएं, पुरुष यहाँ तक की बच्चे भी शामिल हुए I क्या जबरदस्त संघर्ष था वो , हम उस नल को फिर से लगवाने में कामयाब हुए I
जिन आदमियों के खिलाफ हम लड़ रहे थे उन्होंने हमारी प्रेषण और अपमान करने के लिए गुंडे भेजे I कई पुरुष जिन्होंने इस लड़ाई में हमारी मदद की थी उन्होंने इन सबका सामना करने की ठान ली I उन्होंने उन गुंडों से पूछा “ क्या जिन लोगों ने तुम्हे हमे डराने के लिए यहाँ भेजा है वो तुम्हारे घर का खाना खाते है? पानी पीते हैं? हमे तो कोई परेशानी नही तो हम तो तुम्हारे यहाँ का खाना कहा लेंगे , पानी पी लेंगे पर वो लोग तो तुम्हे अछूत और नीचा मानते है I” इस तरह से हमने उनकी सोच को बदला I उन्होंने भी हमारा समर्थन किया I
पुलिस के आने पर महिला, पुरुष यहाँ तक कि स्कूल के बच्चों भी सरकारी नल को दुबारा लगाने में हमारी मदद की I अपनी इस जीत की ख़ुशी में हमने सबने पांच पांच रूपये का चंदा इकट्ठा किया, जागोरी ने भी तीं सौ रूपये दिए और in पैसों से सबने मिलकर लड्डू खाए I और पता है किसने इस नल का उद्घाटन किया ! अल्पसंख्यक समुदाय से एक एकल औरत ने I ज़िन्दगी बहूत दमदार थी तब I
ये तस्वीर दखिंपुरी एक और ख़ास लड़ाई की है I कुछ आदमी जो भी मांगे , यहाँ तक कि बच्चों तक को शराब बेचते थे I हमने कई बार उन्हें शराब बेचने से रोकना चाहा पर उन्होंने नही सुनी I एक और परिवार था जो शराब बनाता था I आसानी से शराब मिल जाती थी तो दुसरे इलाके से भी मर्द पीने आ जाते और नशे में हुडदंग मचाते I हमने पुलिस को सूचना दी और एक जन बैठक भी बुलायी I पुलिस की मदद से इस धन्धे को बंद करवाया I
वैसे हम दुसरे मसलों पर भी जन बैठक आयोजित करते थे I हम में से ही कोई एक ढोल लेकर बैठक के समय और जगह की मुनादी कर देती और बीएस लोग तय किये गये जगह पर इकट्ठे हो जाते I (सीधे हाथ से चौथी खड़ी औरत मै ही हूँ I)
जिन संस्थाओं ने मुझे महला समाख्या से सम्पर्क करवाया , उन संस्थाओं को छोड़ने के बाद भी महिला समाख्या से मेरा नाता कई सालों तक जुड़ा रहा I वे अपने कई ट्रेनिंग में मुझे अपने कई कार्यक्रमों में बुलाते रहते I ये तस्वीर लखनऊ में हुए एक जलूस की है I अगर मेरी याददाश्त सही है तो ये किसी 8 मार्च को निकाली गई रैली की तस्वीर है I इसमें भाग लेने वाली सभी महिला समाख्या उत्तर प्रदेश के अलग अलग जिलों में काम कर रही कार्यकरता है I (पिछली कतार में बाएं से दिख रही पांचवी औरत मै हूँ I)