एक खास दौर की यादें: टिहरी में महिला सामाख्या की शुरुआत
एक खास दौर: टिहरी में महिला सामाख्या की शुरुआत
मैं उत्तराखंड के टिहरी जिले के तमियार नामक एक छोटे से गांव की हूं। यह एक दुर्गम पहाड़ी इलाका है। चारों ओर से लगभग कटे हुए इस गांव में जिंदगी के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। जब मैं बच्ची थी जो मेरे पिता पूरे परिवार को पुराने टिहरी में लेकर आ गए थे। अपनी पढ़ाई-लिखाई मैंने यहीं पूरी की। पशु चिकित्सा विज्ञान में एमएससी की डिग्री पूरी करने के बाद मैंने कुछ समय के लिए टिहरी परियोजना के पर्यावरण विभाग में काम किया और बाद में मैंने एक लेक्चरर के तौर पर भी काम किया। मगर इन सारे कामों से मुझे मानसिक संतोष नहीं मिला और लिहाजा मेरी जिंदगी एक अलग दिशा में मुड़ती चली गई।
मेरे नए सफर की शुरुआत इन्टेक की अमरज्ञान सीरीज परियोजना के साथ हुई जिसमें अनाम लोगों की मौखिक आपबीतियों को दर्ज किया जाता था। केस स्टडीज को दर्ज करने की इस परियोजना में एक आत्मवृतांत हेवलघाटी की बचनी देवी का भी था।
उनके अनुभवों ने मुझे इस बात का अहसास कराया कि अकादमिक ज्ञान के साथ-साथ जीवन के यथार्थ और कठिनाइयां भी हमें सच्चे अर्थों में एक सार्थक जीवन जीना सिखाती हैं। लिहाजा, मैंने वल्र्ड फूड प्रोग्राम में एडवाइजर के तौर पर काम कर रहे एस एम दीवान के साथ रानीचैरी के गांवों में भी काम किया। तीन साल बाद 1994 मैं टिहरी में महिला सामाख्या कार्यक्रम से जुड़ गई। यह कार्यक्रम मेरे जमीनी अनुभवों पर गहरी छाप छोड़ने वाला था।
महिला सामाख्या से जुड़ने के बाद भी मेरे पास महिलाओं के अधिकारों की राजनीति, लैंगिक भेदभाव और नारीवाद के बारे में कोई पुख्ता समझ नहीं थी। जब मैंने जागोरी डाॅक्युमेंटेशन ऐण्ड रिसर्च सेंटर की संस्थापक और महिला सामाख्या की सलाहकार आभा भैया तथा जेंडर विशेषज्ञ कमला भसीन द्वारा संचालित एक कार्यशाला में हिस्सा लिया तो मुझे स्थिति कुछ-कुछ समझ में आने लगी।
इसी कार्यशाला में मैंने यह भी समझा कि नारीवाद और महिलाओं के हकों की राजनीतिक पुरुषों के विरुद्ध नहीं है बल्कि यह हर किस्म की संकुचित और प्रतिगामी सोच, अन्याय और उस शोषण के खिलाफ है जो भेदभाव, असमान वितरण और असमानता की संरचनाओं को सींचता है। यह जागोरी से मेरा पहला परिचय था।
इस कार्यशाला से मैंने जो समझ हासिल की उससे मुझे अपनी समझदारी विकसित करने में काफी मदद मिली। यहां से जागोरी में आने-जाने, आभा दी और कमला दी के साथ नारीवाद के मानववादी आयामों पर चर्चाओं का सिलसिला शुरू हुआ और सीखने की एक ऐसी शृंखला का सूत्रपात हुआ जो आज भी जारी है।
इन सारे प्रयासों के बावजूद तरह-तरह की गलतफहमियां, संदेह और एक अधूरेपन का अहसास मेरे आत्मविश्वास को बार-बार चोट पहुंचा रहा था। इसी दौरान, एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए तैयार किए जा रहे एक राष्ट्रीय दस्तावेज की गहमागहमी मेरे लिए एक नई चुनौती बनकर आयी। चूंकि मैं इस क्षेत्र से अभी भी भली-भांति परिचित नहीं थी इसलिए मुझे जागोरी से कुछ मदद की उम्मीद दी। जब मुझे वहां से भी मदद नहीं मिली तो हमारी टीम ने एक मात्रात्मक और गुणात्मक प्रक्रिया आधारित ब्यौरा तैयार कर दिया। यह मेरी जिंदगी में एक अहम ‘मोड़ बिंदु’ था।
टिहरी के महिला सामाख्या कार्यक्रम को सुगमतापूर्वक चलाना एक अच्छी-खासी चुनौती थी जिसके लिए जागोरी ने मुझे हर कदम पर मदद दी। जागोरी के दस्तावेजीकरण और लिखने की शैली ने मुझे पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि मैं बाइन्यू को राइबार शृंखला के लिए भी इसी शैली का प्रयोग करने लगी जिसमें हम स्वास्थ्य, कानून, परंपरागत उपचार, राजनीति और नारीवादी इतिहास जैसे महिलाओं के जीवन से जुड़े मुद्दों पर दस्तावेज प्रकाशित किया करते थे। इसमें हमने पोस्टर्स, फड़ (पट-चित्रों का स्क्राॅल कैनवस), स्टिकर्स, पर्चे, गीत, नाटक, कविताएं आदि भी प्रकाशित कीं ताकि स्थानीय स्तर पर इन पेचीदा सवालों पर एक जागरूकता और समझदारी विकसित की जा सके।
जागोरी के साथ मिलकर कार्यशालाओं और प्रशिक्षणों का भी आयोजन किया ताकि स्थानीय महिलाओं को इन मुद्दों पर एक विस्तृत समझ प्रदान की जा सके। एक संसाधन केंद्र के रूप में मदद देने के अलावा जागोरी से हमें प्रशासन, संचालन व दस्तावेजीकरण की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए भी मदद मिली। जागोरी से आने वाली संसाधन व्यक्तियों और प्रशिक्षकों ने टिहरी में चलाए जा रहे बाल केंदों के अनूठे प्रयोग में हमें अहम मौकों पर जानकारी व सलाह भी दी। इन केंद्रों में स्थानीय शिक्षक अनौपचारिक शिक्षा दे रहे थे।
मैं टिहरी के महिला सामाख्या कार्यक्रम की सफलता के लिए जागोरी टीम और खासतौर से आभा भैया को सबसे ज्यादा श्रेय देना चाहती हूं। आभा भैया ने हर कदम पर हमारा हौसला बढ़ाया और हमारे मार्गदर्शन के लिए वे हमारे पास आती रहीं। मुझे यह कहते हुए फख्र महसूस होता है कि हम इस कार्यक्रम को स्थानीय स्तर पर बहुत सुंदर ढंग से साकार कर पायीं। महिला सामाख्या के इस सपने को साकार करने में मेरी अपनी टीम ने भी कमाल की भूमिका निभायी। इस टीम को तैयार करने और सिद्धांतों व क्षमता के अनुसार इसको सक्रिय करने के लिए जागोरी की टीम, सभी नारीवादी विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने भरपूर योगदान दिया।
यह अचंभे की बात है कि उस जमाने में एक सरकारी कार्यक्रम में प्रशिक्षण और मार्गदर्शन की जिम्मेदारी जागोरी जैसे नारीवादी संगठन को सौंपी गई थी। हालांकि जागोरी और महिला सामाख्या के संबंधों में बार-बार उतार-चढ़ाव आते रहे मगर यह रिश्ता कायम रहा। आभा और शांति के साथ औरतों का जुड़ाव, कमला के गीतों में उनका खुद को ढूंढना इस नारीवादी चेतना के प्रतिबिंब थे। महिला सामाख्या से हटने के जागोरी के फैसले ने इस रिश्ते में एक खराश पैदा कर दी और फलस्वरूप अब यह कार्यक्रम विशुद्ध सरकारी कार्यक्रम बनकर रह गया है।
जागोरी और संगत की बदोलत मैंने एक अंतर्राष्ट्रीय जेंडर एवं विकास कार्यशाला में भी हिस्सा लिया। इस अनुभव से मेरी नारीवादी समझ को एक शक्ल मिली और मुझे ज्यादा संवेदनशीलता के साथ स्थानीय स्तर पर काम करने की ताकत मिली। जेंडर और विकास कार्यशाला से जो विश्लेषणात्मक सीखें मिलीं उनको हमने ‘सहारा संघ’, ‘नारी अदालत’ और ‘पैदल पैरोकार’ (बेयरफुट एडवोकेट्स) जैसे टिहरी के स्थानीय कार्यक्रमों में बखूबी इस्तेामल किया ताकि महिलाएं अपने जीवन में दैनिक हिंसा की समस्या का मुकाबल कर सकें और उनका सशक्तिकरण हो। मुझे यह कहते हुए संतोष होता है कि महिला सामाख्या में हमारी कोशिशों से जो आधारशिला रखी गई वह आज भी कायम है। महिला सामाख्या द्वारा गांवों में बनाए गए महिला समूह अभी भी जीवित दस्तावेज हैं जो अपनी सार्थकता और प्रशिक्षण समूह के रूप में जागोरी के महत्व को सिद्ध करते हैं।
जागोरी की ही कल्याणी मेनन सेन ने हमें खेती और खानपान से जुड़े मुद्दों को भी नारीवादी नजरिए से देखने में मदद दी जो हमारे लिए एक अनूठा तोहफा है।
जहां तक मेरा सवाल है, मैं राजनीतिक प्रक्रियाओं में मानवतावादी समाधानों और समता आधारित रणनीतियों की मेरी तलाश के लिए जागोरी से मिले प्रशिक्षणों को सबसे पहला श्रेय देना चाहती हूं। मैं अपने काम की ठोस बुनियाद और शक्तिशाली महिलाओं के समूहों की रचना के लिए जागोरी से मिली लगातार मदद और जागोरी से ही जुड़ी संसाधन व्यक्तियों व साथियों से मिले लगातार प्रोत्साहन को बहुत महत्वपूर्ण मानती हूं। जागोरी की सभी साथियों को मेरा सलाम!