एक ऐतिहासिक जीत

संवाद
by आपका पिटारा / Ref आपका पिटारा
जुलाई 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय क़ानून की धारा 377 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे ख़ारिज करने का फैसला सुनाया था। 1860 में अंग्रेज़ों के ज़माने में बनाए गए इस कानून के तहत किसी भी 'अप्राकृतिक' (जो प्रजनन से जुड़ी न हो) यौन सम्बन्ध को अपराध माना जाता है। वयस्क यौन स्वतंत्रता के सन्दर्भ में यह एक सुनहरा दिन था। लेकिन दुर्भाग्यवश दिसंबर 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए कि धारा 377 के संशोधन या निरसन से जुड़े मामले को संसद के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए न कि न्यायपालिका पर, इस फैसले को उलट दिया।
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Jagori
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