एक अदृश्य अर्थव्यवस्था: घरेलू कामगार

by गीता मेनन / Ref गीता मेनन
"घरेलू कामगार हमारी अर्थव्यवस्था का एक मूक व अदृश्य आधार है।"… प्रस्तुत लेख में घरेलू काम को "काम" का दर्जा न मिलने के सन्दर्भ में समाज की पितृसत्तात्मक वास्तविकता को प्रकाशित किया गया है जहाँ घरेलू काम को एक लैंगिक नज़रिये से देखा जाता है और कमतर माना जाता है। घरेलू कामगारों के इस अहम कामगार वर्ग समूह को उनका जायज़ दर्जा व न्याय दिलाने के लिए एकजुट होकर संयुक्त प्रयास करने की ज़रुरत है।
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Jagori
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