अच्छी औरत : बुरी औरत

by वीणा शिवपुरी / Ref वीणा शिवपुरी
" समाज की पितृसत्तात्मक बिसात में औरत एक मोहरा हैं । वह भी सबसे छोटा । उसकी चाल सिर्फ एक घर की है । अगर उसने उछल कर लम्बी चाल चलनी चाही तो उसे रोखने चाहिए , तभी खेल चलेगा । समाज और परिवार में अगर औारत ने मेहनत करने, त्याग करने या दुःख सहने से इनकार कर दिया तो पुरषों का राज नहीं गिर जाएगा ? बस इसलिए बनाई है अच्छी और बुरी औरत की छवि । .... लेखिन सवाल यह है कि अच्छी और बुरी का फैसला हमारे हाथ में क्यों नहीं ? " आगे पढ़िए...
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