औरत औरत का सहारा बने

by सुहास कुमार / Ref सुहास कुमार
मर्दो से भी दी पग आगे बढ़ जाती हैं सच हैं औरत ही औरत को तड़पाती हैं सास बन ज्यों बहू से बदला लेती हैं जितने जुल्म सहे दुगुने देती हैं बेटियों को भोझ मान पालती पीढ़ी दर पीढ़ी यही सिलसिला चलाती । आगे पढ़िए...
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