आग अपने ही आंगन की भुलसाए हैं

by कमला भसीन / Ref कमला भसीन
" कैसी अजीब बात हैं कि जो औरतो बराबरी या इंसाफ कि बात उठाती हैं उनके बारे में कहा जाता हैं कि वे घर का चैन लूट रही हैं । सच यह है कि बहुत से घरों में चैन शांति हैं ही नहीं । जिसे हम शांति समझते हैं वह कब्रिस्तान की खौपनाक शांति हैं जो औरतो की इच्छाओं और उनकी इज़्ज़त की लाशो पर खड़ी हैं । जो औरत पारवारिक हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाती हैं वे अपने परिवारों को असली मानो में सुखी घर बनना चाहती हैं - ऐसे घर जहां प्यार, आपसी समझ और एक- दूसरे की इज़्ज़त हो , ऐसे घर जहां बच्चे शांति और बराबरी के पाठ सीखो । " आगे पढ़िए…
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