रूप कंवर नहीं, गुलाब कंवर

by अनौपचारिका / Ref अनौपचारिका
" दौराला की रूप कंवर की चिता की आग अभी भी हमारे दिलों मैँ जल रही हैं । क्या वह मन से सती होना चाहती थी ? एक पूरा जीवन उसके सामने था । पुरुष प्रधान समाज में धर्म , समाज , परिवार की इज़्ज़त आदि का हवाला देकर आखिर कब तक औरतो का शोषण होता रहेगा । हमे गुलाब कंवर पैदा करनी हैं लड़कियों, औरतो की सोई ताकत जगानी हैं । " आगे पढ़िए...
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